आलोचना >> जीने का उदात्त आशय जीने का उदात्त आशयपंकज चतुर्वेदी
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लेखक ने इस पुस्तक के पहले निबंध में कुअंर नारायण के विचारों और उनकी समग्र काव्य-यात्रा से चुनी हुई कविताओं के विश्लेषण के जरिए उनकी काव्य-दृष्टि को समझने और उसका एक स्वरुप निर्मित करने की चेष्टा की है।
युवा कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी की यह पुस्तक हमारे समय के वरिष्ठ कवि कुंअर नारायण की कविता पर केन्द्रित है। किसी भी विचारधारा के प्रभुत्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने सत्य को एक विस्तृत पटल पर एक द्वंद्वात्मक तथा बहुस्तरीय अवधारणा के रूप में आत्मसात किया है। आदर्श और यथार्थ, ज्ञान और संवेदना, समय और इतिहास की द्वंद्वात्मक संहति से कुअंर नारायण की कविता संश्लिष्ट, गहन और विचारोत्तेजक घटित हुई है। उससे हम अपनी आत्मा को आलोकित और समृद्ध कर सकते है; क्योंकि उसमें वाग्जाल नहीं, एक मार्मिक पारदर्शिता और जीवन-सत्य का दुर्लभ विवेक है। लेखक ने इस पुस्तक के पहले निबंध में कुअंर नारायण के विचारों और उनकी समग्र काव्य-यात्रा से चुनी हुई कविताओं के विश्लेषण के जरिए उनकी काव्य-दृष्टि को समझने और उसका एक स्वरुप निर्मित करने की चेष्टा की है। बाद के निबंधों में क्रमशः उनकी सभी काव्य-कृतियों का गहन और व्यापक मूल्यांकन किया गया है। बकौल लेखक, ‘शायद इसकी कोई सार्थकता है तो यह रेखांकित करने में कि कुअंर नारायण विचारों की बहुलता, दार्शनिक बेचैनी, आत्मवत्ता, प्रेम, जीवन की समृद्धि, सौंदर्य, अपरिग्रह और सत्य के प्रति अदम्य आस्था के कवि ही नहीं; गुलामी और अन्याय के विभिन्न रूपों के प्रति युयुत्सा और प्रतिरोध से संपन्न, गहरे विडंबना-बोध, करूणा, व्यग्य और परिवर्तन एवं प्रगति की कामना के भी कवि हैं।’
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